काव्य संग्रह अनकहे जज़्बात - राजीव डोगरा ! डॉ. नीरज पखरोलवी !
इस काव्य संग्रह की शुरुआत श्री
सिद्धिविनायक स्तुति से हुई है l
“हे ! वाग्वादिनी माँ”
कविता में माँ सरस्वती से ज्ञान और ध्यान की प्राप्ति की
प्रार्थना की गई है । अविद्या से छूटकारा पाने और ज्ञान की प्राप्ति के लिए कवि
आह्वान करता है कि -
“आकर हमें
विद्या का वरदान दे
हे! वाग्वादिनी माँ
हे! वाग्वादिनी माँ
तू हमें ज्ञान दे
तू हमें ध्यान दे …”
“बेड़ी का दर्द” नारी के अंतर्मन की पीड़ा व उसकी भावनात्मक स्थिति को व्यक्त करती एक
बेहतरीन कविता है । अपनी इस कविता के माध्यम से कवि कहता है कि किस्मत में जो बंधन हैं, वे हमें दूरी पार नहीं करने देते। जीवन की परिस्थितियाँ और किस्मत की
बंदिशें हमें बांधित करती
हैं । “बेड़ी का दर्द” कविता इसी चिंता को कुछ यूँ
जाहिर कर रही है:-
“कहीं दूर गगन में निकल जाऊं
पर पड़ी पाँव में जो बरसों से
किस्मत की बेड़ी,
कैसे तोड़ इसे उड़ जाऊं l”
इस काव्य संग्रह की
“दोस्ती” कविता सन्देश देती है कि अच्छे दोस्त
हमेशा दिल से और सच्चाई से दोस्ती निभाते रहते हैं । सच्चे दोस्तों को अपनी दोस्ती
को जीवंत और मजबूत रखने के लिए हमेशा दिल से मिलना चाहिए और एक-दूसरे के साथ मस्ती
करते रहना चाहिए:-
“दोस्त अपनी दोस्ती
दिल से निभाते
रहना
कर-कर बातें मुझे
हमेशा हँसाते रहना..”
कवि बचपन की
नादानियों और मासूमियत को याद करता है और उसकी विहान खो जाने पर दुःखी होता है l वह उन
सुंदर और मासूम पलों को याद कर रहा है, जो अब वहाँ नहीं
हैं ,जहाँ बचपन गुजरा था:-
“वो बचपन
वो नादानियाँ
अब कहाँ चली गई .. ?
घूमता फिरता था जहाँ
वो हसीन वादियां भी
अब कहाँ चली गई .. ?
मानवीय रिश्तों
में विश्वास और समर्थन का होना बहुत महत्वपूर्ण होता है। इन रिश्तों में हम अपनी
भावनाओं को साझा करते हैं,
एक दूसरे के साथ जुड़े रहते हैं और समर्थन प्राप्त करते हैं।
लेकिन दुःख की बात यह है कि कई बार हमारे
अपनों से धोखा मिल सकता है । "तेरा सहारा" कविता में अंतर्मन की इसी
पीड़ा में कवि तन्हा चीखते हुए कह रहा है -
“जब शहद से
मीठे लोगों ने
बन विषधर मुझको डंसा
तो अपनों ने भी मुझसे
किनारा कर लिया….”
“गुलाम
आज़ादी” कविता के माध्यम से कवि हम भारतीयों की विघटनकारी मानसिकता पर चोट करते हुए कहता है कि हम आज़ाद तो हो गए
लेकिन अभी भी धर्म-जाति के मोहपाश से मुक्त नहीं हो पाए हैं l ऐसी आज़ादी किसी काम की नहीं । इस काव्य-संग्रह की “चलना ही होगा” कविता अंधेरे कोनों पर रोशनी
डालती है । “तृषा” कविता में कवि
गहरा संदेश देते हुए कहता है कि हमें अपनी भावनाओं और इच्छाओं को छिपाने की बजाय
उन्हें समझने और साझा करने की जरूरत है । कवि ने “अस्मिता
की तलाश” कविता
को संसार और समाज के प्रति अपने मन के गहरे प्रेम से रचा है । “ज़िन्दगी तेरा कोई पता नहीं”
कविता जीवन की अनिश्चितता को व्यक्त करती है । “मैं मुक्त हूँ” कविता हृदय की भावनाओं का
सुंदर शब्दों में आकार लिए हुए है । “कुछ अनकहा” कविता में एक अनकही खामोशी का
जिक्र है,जो अंतर्मन में अपने अस्तित्व और पहचान की तलाश
में बहुत चीखती है । “अंतर्मन की पीड़ा” कविता से ये ज़ाहिर हो जाता है की लफ़्ज़ों की जादूगिरी राजीव जी को आती
है । “नासूर”कविता हृदय को बड़ी
ही गहराई तक स्पर्श करती है । “जीवन चक्र” कविता में संवेदनात्मक धरातल पर जीवन का एक विस्तृत फ़लक उजागर होता है
। “नवीन जीवन” कविता एक नई
शुरुआत, एक नया जीवन और मानवता की सच्ची पहचान की खोज को
उजागर करती है l "पिंजरे में बंद मानव" कविता
अत्यंत गहरी और संवेदनशील भावनाओं को व्यक्त करती है। इस काव्य संग्रह की अन्य
कविताओं जैसे कोई शिकवा नहीं, बेदर्द दुनिया, एक दर्द ,आज का आशिक, तेरा इंतजार, नई मोहब्बत, मेरा सफर, बदलता इश्क़ आदि सभी कविताओं में राजीव जी ने अपने जीवन के अनुभवों को
उकेर दिया है l जीवन की सच्चाई और सरलता को उनकी कविताओं
में महसूस किया जा सकता है ।अधिकतर कविताएं ऐसी हैं कि यदि उन्हें बार-बार पढ़ा
जाए तो उनके नए-नए अर्थ खुलते जाते हैं ।
यह काव्य-संग्रह
राजीव जी का पहला प्रयास है l
इस संग्रह में बहुत सी रचनाएं उम्दा हुई हैं, जिनका कोई जवाब नहीं है । फिर भी, राजीव जी को
साहित्यिक जगत में अगर एक विशेष स्थान हासिल करना है तो उन्हें अपनी ये साधना
मुसलसल जारी रखनी होगी क्योंकि साहित्यिक जगत को राजीव जी से बहुत अपेक्षाएं हैं l
कवि को भी इस बात का आभास है l तभी तो
कवि कह रहा है :-
“आसमाँ को
अपने हौसलों से,
थरथराना अभी बाकी है…..!
राजीव जी का
सृजन-कर्म अनवरत आयुष्मती उपलब्धियों का वरण करे l मेरी हार्दिक शुभकामनाएं !
डॉ. नीरज
पखरोलवी
गॉंव:- पखरोल, डाकघर सेरा, तहसील:- नादौन,
जिला हमीरपुर (हि. प्र.)-177038
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