इस अवसर पर प्रो.अब्दुल बिस्मिल्लाह ने कहा कि एस.आर.हरनोट का यह उपन्यास वास्तव में प्रकृति की नैसर्गिकता में अमानवीय हस्तक्षेप की कथा है। भारतीय संस्कृति में "प्रकृति और पुरुष" की को दार्शनिक परिकल्पना है उसमें"पुरुष" का तात्पर्य या तो ईश्वर है या फिर उसके द्वारा सृजित मानव। किंतु "पुरुष" का वही रूप जब "परुष" हो जाता है तो प्रकृति नष्ट हो जाती है। परुष का मतलब कठोर और निर्दयी है। यही मानव का अमानव हो जाना है। प्रकृति कभी अपकृति नहीं हो सकती इसलिए नैसर्गिक ही रहती है। जैसे इस उपन्यास की मुख्य पात्रा सुनमा देई। हरनित ने इन्हीं चिंताओं और संघर्षों को बहुत गहरे इस उपन्यास में उकेरा है जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं।
मुख्य वक्ता और प्रख्यात आलोचक प्रो.सूरज पालीवाल ने अपने उद्भोधन में कहा कि हरनोट हिन्दी के विरले कथाकार हैं जिनके पास हिमाचली जीवन की अछूती और अनूठी कथाओं का भरा-पुरा खजाना है। हरनोट को बधाई देते हुए पालीवाल ने कहा कि अपने नए उपन्यास में हरनोट ने पर्यावरण, पानी और स्त्री की समस्या को गहरे रूप में उठाया है । हिंदी में परंपरा है और यह परंपरा बहुत बड़े लेखकों के साथ जुड़ी हुई है कि वे अपनी एक रचना से जाने जाते हैं लेकिन हरनोट ने उस परंपरा को तोड़ा है इसलिए वे हिडिंब जैसे महत्वपूर्ण और चर्चित उपन्यास की सीमाओं से बाहर गए हैं, उन्होंने उन हदों का अतिक्रमण किया है, जिसे बड़े से बड़े लेखक नहीं कर पाए। इसीलिए हरनोट बड़े कथाकार हैं, उनका विजन बड़ा है और भाषा की चमत्कारिक पकड़ उनके पास मौजूद है।
उच्च अध्ययन संस्थान के विजिटिंग फैलो डॉ. नीलाभ ने हरनोट के नए उपन्यास 'नदी रंग जैसी लड़की' पर परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए हुए कहा कि यह उपन्यास अपने 'कहन' के जिस सरलतम और सहजतम रूप से हमें परिचित कराता है, वह समकालीन हिंदी कथा संसार में अनूठा है ।
युवा आलोचक प्रशांत रमण रवि ने अपने वक्तव्य में कहा कि हरनोट का सद्यः प्रकाशित उपन्यास 'नदी रंग जैसी लड़की' मौजूद समय में पर्यावरण संकट और स्त्री-विमर्श को केंद्र में रखकर लिखी गई एक महत्वपूर्ण कृति है।
जगदीश बाली ने उपन्यास पर चर्चा करते हुए कहा कि हरनोट का उपन्यास उनके पहले उपन्यास ‘हिडिंब‘ व अन्य कहानियों की तरह सामाजिक व राजनैतिक सरोकारों को आवाज देती हुए एक बेहतरीन पेशगी है।
डॉ. देवेन्द्र गुप्ता, अध्यक्ष क्रिएटिव राइटर फॉर्म ने मुख्य अतिथि, कार्यक्रम के अध्यक्ष अब्दुल बिस्मिल्लाह, मुख्य वक्ता आलोचक सूरज पालीवाल व अन्य वक्ताओं का फोरम की और से हिमाचली टोपी, मफलर और विशेष आदरसूचक खतक से स्वागत करते हुए इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में आने के लिए विशेष आभार व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि यह एक ऐतिहासिक साहित्यिक सम्मलेन है और इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के माध्यम से हम हमारे समय की वास्तविकताओं को और भी नजदीकी से समझेंगे. उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि हमने पहले सेतु साहित्य पत्रिका का विशेषांक हरनोट की रचनाशीलता पर निकाला और अब उनके महत्वपूर्ण उपन्यास का लोकार्पण कर रहे हैं।
हिमाचल अकादमी के सचिव डॉ. करम सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन के लिए आभार व्यक्त किया. धन्यवाद प्रस्ताव युवा कवि दिनेश शर्मा ने प्रस्तुत किया। मंच संचालन युवा कवि और आलोचक डॉ. सत्य नारायण स्नेही ने सारगर्भित टिप्पणियों के साथ किया।
खचाखच भरे रोटरी टाउन हाल में प्रदेश के विभिन्न जिलों से आये लेखकों सहित स्थानीय लेखक, रंग कर्मी, शोद्धार्थी और हरनोट की पंचायत के बहुत से साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे. हरनित पर एमफिल और पीएचडी कर रहे शोधार्थी भी इस कार्यक्रम में दूर दूर से आए थे। शिमला में अब तक का यह बड़ा और महत्वपूर्ण आयोजन रहा जिसमें गांव के अतिरिक्त स्थानीय व प्रदेश के विभिन्न स्थानों से लगभग 150 के करीब साहित्य प्रेमी थे। धन्यवाद प्रस्ताव दिनेश शर्मा ने प्रस्तुत किया।
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