केशव जी के उपन्यास "हद बेहद" का लोकार्पण..
चाय बागान के लिए मशहूर नगरी पालमपुर में कल रचना संस्था द्वारा वरिष्ठ कवि कथाकार केशव जी के सद्य प्रकाशित उपन्यास "हद बेहद" का लोकार्पण मुख्य अथिति ख्यात आलोचक प्रो. सूरज पालीवाल जी के हाथों सपन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कथाकार आलोचक सुशील कुमार फुल्ल ने की। उपन्यास पर पालीवाल जी के मुख्य वक्तव्य के अलावा डॉ.विद्यानिधि छाबड़ा और चंद्ररेखा ढडवाल जी के साथ मुझे भी रचना संस्था और केशव जी ने बहुत स्नेह और इसरार के साथ इस किताब पर बोलने के लिए आमन्त्रित किया था। बहुत सार्थक संवाद रहा। पालीवाल जी ने केशव जी के इस उपन्यास और समग्र कथा चेतना पर भी गम्भीर और विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया। डॉ विद्यानिधि और चंद्ररेखा ढडवाल जी द्वारा उपन्यास पर प्रस्तुत आलेख भी बहुत सार्थक और सारगर्भित थे।
इस उपन्यास को पढ़ना शुरू किया तो स्मृति में केशव जी का बहुत पहले पढ़ा सम्मोहित करता हुआ सा उपन्यास "हवा घर" तैर आया। कसौटी की तरह.. पाठकीय अपेक्षाएं जगाता हुआ। हद बेहद भी वैसी ही महीन बनावट बुनावट लिए हुए है। अनुभव अर्जित जीवन दर्शन और उससे उपजी अनेकानेक उक्तियों और सूत्र वाक्यों पर बार बार हमें रोकता हुआ। गज़ब की उधरणीयता लिए हुए। केशव का कथाकार चीज़ों, स्थितियों और घटनाओं को उनके बाहरी स्वरूप के साथ साथ उनकी भीतरी बनावट में भी निरखने परखने का कायल है। संस्कार और इंदिरा के किशोरवय प्रेम के सघन और उद्दाम आवेग को खूबसूरती से दर्ज़ करती हुई बहुत समर्थ और पठनीय भाषा। लेकिन उपन्यास का पाठ एक प्रेमकथा के रूप में ही नहीं निपटाया जा सकता। अपनी अनेक सशक्त अन्तर्कथाओं या उपकथाओं के चलते यह अपने छोटे आकार में भी महाख्यान का कलेवर लिए हुए है। डॉ नीलिमा की उपकथा, संतोष और शकुन्तला की, मकान मालकिन की, मोहन की और वरुण और प्रेमा की उपकथाएं। त्रासदियों और यंत्रणाओं को दर्ज करती हुई। दलित और स्त्री प्रश्नों को बहुत विचारोत्तेजक और प्रभावी तरीके से उठाता हुआ लेकिन इन विमर्शों की रूढ़ अवधारणाओं से काफी अलहदा तरीके से। इस उपन्यास में ही नहीं केशव जी की अनेक कहानियों और उपन्यासों के अनेक सशक्त स्त्री पात्र अलग आकर्षित करते हैं। सुखद आश्वस्ति से भरते हुए। कुल मिलाकर इस उम्दा औपन्यासिक कृति को पढ़ना मनुष्य होने की गरिमामयी अनुभूति के साक्षात्कार जैसा है। केशव जी इस उम्दा कृति के प्रकाशन लोकार्पण पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
आयोजन की पूर्व शाम केशव जी के घर पर सूरज पालीवाल जी के सानिध्य में ऐसी शानदार संवाद बैठिकी जमी कि रात डेढ़ बजे भी किसी का सोने जाने का मन नहीं था। मुक्तिबोध से लेकर समकाल तक सिर्फ केंद्रित साहित्य चर्चा। बहुत अर्से बाद किसी आयोजन से इस तरह भरापुरा सा लौटने का अहसास हो रहा है। बढ़िया आयोजन के लिए रचना संस्था को भी साधुवाद।
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