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08 June 2022

बदला मौसम बदल गए हम

 आत्मा रंजन का लेख फेसबुक से साभार 

पर्यावरण दिवस के अवसर पर शिमला गेयटी सभागार में वरिष्ठ लेखिका डॉ. विद्यानिधि छाबड़ा जी के कथा संग्रह "बदला मौसम बदल गए हम" के हिंदी और अंग्रेज़ी संस्करणों का लोकार्पण सचिव भाषा एवं संस्कृति विभाग श्री राकेश कंवर जी के हाथों संपन्न हुआ। डॉ. विद्यानिधि छाबड़ा जी और कीकली संस्था ने बहुत स्नेह पूर्वक इस किताब पर बोलने के लिए मुझे भी आमंत्रित किया था। प्रो. मीनाक्षी एफ. पॉल, डॉ. कुलराजीव पंत और कामायनी बिष्ट और कुछ बाल समीक्षकों के साथ।

किताब में दो कहानियां विद्या जी की और एक स्वर्गीय रमा सोहनी जी की शामिल हैं। ये प्रथमत: बाल कथाएं हैं। बाल कथा की दृष्टि से पठनीयता, बोधगम्यता, कौतूहल, विस्मय, नाटकीयता, किस्सागोई जैसे तत्वों की मेरी पाठकीय अपेक्षाओं के समक्ष इन्हें उम्दा बालकथाओं की श्रेणी में खड़ा पाता हूं। लेकिन बाल कहानी मात्र की तरह पढ़ कर इन्हें निपटाया नहीं जा सकता। अभिधा में ये बाल कहानियां और लक्षणा व्यंजना में इनका पाठ समकालीन कहानियों तक पहुंचता है। जहां प्रकृति के पात्र फिर रूपक और प्रतीक बनते हुए इन्हें वृहत्तर संदर्भों की कथाएं बनाते हैं। बाल कथाओं में विचार की ऐसी सुंदर संगति कथाकार की कथा प्रतिभा से संभव हो पाती हैं। मुद्दा आधारित कथाएं होने के बावजूद भी यहां मुद्दा सतह पर तैरता हुआ नहीं दिखाई देता बल्कि कथाशिल्प में भली प्रकार अंतर्निहित या विन्यस्त है। पूरी किताब का सूत्र वाक्य मुझे पहली ही कहानी में मिलता है जब पीपल नदी से कहता है कि - उजाड़ना इंसान की फितरत है हमारी नहीं। हमें अपना सबकुछ बांटने में मज़ा आता है.. और सूत्र विचार अन्तिम कहानी में कि जानवरों में (भूख के अलावा) हिंसा या दुर्भावना पैदा करने वाला मुख्य कारण इंसान ही है।..कि इंसान का बदला मगरमच्छ बंदर से ही ले लेता है और खुश होता है। भाषा का बेहतर बर्ताव, सुरुचिपूर्ण रंगीन चित्र और साजसज्जा भी अलग आकर्षित करते हैं। 

जे. एन. यू. में नामवर सिंह जी की विद्यार्थी रही विद्यानिधि छाबड़ा ने शरुआती दिनों में महत्वपूर्ण पत्रिका हंस की राजेन्द्र यादव की संपादकीय टीम में अनेक वर्षों तक काम किया। फिर उसके बाद दशकों तक हिमाचल के महाविद्यालयों में अध्यापन व सेवानिवृत्ति के बाद इन दिनों सृजन, अनुवाद और आलोचना में गंभीरता से सक्रिय हैं। लोकार्पण समारोह में हॉल न सिर्फ खचाखच भरा हुआ था बल्कि अनेक लोगों ने अंत तक खड़े होकर भी आयोजन में शिरकत की। उम्दा किताब और उसके शानदार लोकार्पण के लिए डॉ. विद्यानिधि छाबड़ा, रमा सोहनी और कीक्ली ट्रस्ट को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।

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