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22 September 2024

पुस्तक-समीक्षा लघुकथाओं में जीवन के विभिन्न रंग कोई अपना रतन चंद 'रत्नेश


कहानी और लघुकथा के साथ-साथ अन्य विधाओं में भी समान रूप से अपनी कलम चलाने वाले वरिष्ठ साहित्यकार रतन चंद 'रत्नेश' की हालिया प्रकाशित पुस्तक 'कोई अपना' में कुल साठ लघुकथाएं हैं। उल्लेखनीय है कि रत्नेश हिमाचल प्रदेश के लघुकथा साहित्य पर समय- समय पर आलेख लिखते रहे हैं और 'हिमाचल का लघुकथा संसार' नामक उनका लेख कई पुस्तकों, पत्रिकाओं और वेबसाइटों में शामिल है। उनके संपादन में हिमाचल के लेखकों की कुछ पुस्तकें पहले भी प्रकाशित हो चुकी हैं। लघुकथा क्षेत्र में एक पहचान बना चुके रतन चंद 'रत्नेश' की लघुकथाओं में जीवन के कई रूप देखने को मिलते हैं और इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि ये देखन में छोटे लगे, घाव करे गंभीर को पूर्णतः चरितार्थ करती हैं। राजनीतिक दाव-पेंच, सामाजिक विसंगतियां व विडंबनाएं, मनुष्य के दोहरे चरित्र और देश व समाज की चिंता इन लघुकथाओं में स्पष्टतः परिलक्षित होती हैं। 'हम हैं हिंदुस्तानी' एक ऐसी ही लघुकथा है जिसमें एक आटोचालक विदेशी सवारियों को ठगने की मंशा से मुंहमांगी स्कम की मांग करता है परंतु गंतव्य तक पहुंचते-पहुंचते उसकी अंतरात्मा जाग उठती है और वह उनसे वाजिब किराया यह सोचकर लेता है कि उसके इस कृत्य से विदेशों में अपने देश की छवि धूमिल होगी। 'दंगा' और 'व्यस्त' में यह खुलासा हुआ है कि जनमानस कभी अपने इलाके में दंगा नहीं चाहता। कुछ बाहरी ताकतें आकर इसे अंजाम देती हैं। इसी तरह 'आजादी' के वस्तुतः क्या मायने हैं, वह इस शीर्षक की लघुकथा से स्पष्ट होता है। अमीरी और गरीबी के अर्थशास्त्र पर लिखी गई लघुकथाएं बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती हैं। 'दहेज', 'शिकंजा'" और 'समस्या' समाज में विभिन्न रूपों में व्याप्त दहेज नामक कुप्रथा पर प्रहार करती हैं। लघुकथा के मूलस्वरूप लघुता का विशेष ख्याल रखाग या है और कुछ लघुकथाएं तो मात्र तीन-चार वाक्यों में अपनी छाप छोड़जा ती हैं। मिसाल के तौर पर 'रक्तदान' की ये पंक्तियां द्रष्टव्य हैं 'अपने नेता के प्रति आस्था व्यक्त करने के लिए पार्टी के लोगों ने उन्हें रक्त से तौला। शाम को सारा रक्त नाले में बहा दिया गया क्योंकि एकत्रित रक्त को उचित तापक्रम में न रखे जाने के कारण वह किसी काम का नहीं रहा। उधर पास के अस्पताल में दुर्घटना में पांच व्यक्तियों ने रक्त के अभाव में दम तोड़ दिया।' इस तरह यह एक छोटी-सी कथा अपने पीछे कई सवालिया निशान छोड़ जाती है। इसी तरह के कई व्यंग्य और कटाक्ष रत्नेश की लघुकथाओं में देखने को मिलते हैं। 'दो टके की नौकरी' में एक नेता अपने होनहार युवा बेटे को शिक्षित होकर उच्च पद पर आसीन होने के वजाय अपने नक्शेकदम पर चलने के लिए फटकारता है ताकि वह भी पर्याप्त धन कमा सके। बुरे लोगों के साथ-साथ देश व समाज में अच्छे लोग भी बहुतायत में हैं और उनमें स्वार्थ और परमार्थ समान रूप से व्याप्त हैं, इसका प्रतिनिधित्व भी कई लघुकथाएं करती हैं। भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी पर केंद्रित धर्मसंकट, गोल्ड मेडल, देश चलेगा, जरूरी कागज, सिफारिश, उपाय, लूट आदि प्रभावित करती हैं। 'सिफारिश' में ऐसे अधिकारी की मिसाल पेश की गई है जो अपने कार्यालय में सिफारशी लोगों के वजाय प्रतिभावानों को तवज्जह देते हैं ताकि सरकारी कार्य सुचारू रूप से चलता रहे। कुल मिलकार ये लघुकथाएं समाज को आईना दिखाने का काम करती हैं। पुस्तक अमेजन और फ्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध है।


पुस्तक - कोई अपना (लघुकथा संग्रह), लेखक रतन चंद 'रत्नेश', प्रकाशक - शॉपिजन, अहमदाबाद (गुजरात), मूल्य - 268 रुपए। रौशन जसवाल 

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