कुल राजीव पंत जी के कविता संग्रह "पृथ्वी किताबें नहीं पढ़ती" का लोकार्पण..
किताब पढ़ना शुरू करता हूं तो अधिकांश कविताओं के पहले ड्राफ्ट अपनी मित्र मंडली की बैठकों में पंत जी के
मुख से उनके खास अंदाज़ में सुनने के अनेक दृश्य मूर्त होते चले जाते हैं। उनके दुर्लभ किस्म निश्छल कवि व्यक्तित्व से प्रभावित रहा हूं। लेकिन किताब पर बात करता हूं तो इस प्रभावान्विति को एक ओर रख देता हूं। क्योंकि गिरोह बंदियों की घोषणाओं फतवों के दो बड़े खतरे पाता रहा हूं। एक ऐसे फतवे देने वाले अपनी विश्वसनीयता को खो देते हैं दूसरे वे कविता की अपनी समझ को भी कटघरे में खड़ा कर देते हैं। तो इस प्रभावान्विति को एक ओर रख कर इन कविताओं की दुनिया से गुजरता हूं। तो पाता हूं कि ये कविताएं अपने कथ्य के अलावा अपनी कहन में काफी अलहदा काफी कुछ विलक्षण भी हैं। कवि का चीज़ों और स्थितियों को विस्मय, कौतूहल और अद्भुत सौंदर्य दृष्टि से निरखना मुझे आकर्षित करता रहा। गहरी सौंदर्ययुक्त दृष्टि से निरखती और उसे भाषा में रुपायित करती हैं ये कविताएं। अभिव्यक्त नहीं रुपायित करती हैं। चीज़ों की स्थिति, अवस्थिति या निर्मिति में निहित सौंदर्य को निरखता कवि। ये निरखना ये ग्राहायता विलक्षण है। हमारे समय में विधाएं परस्पर निकट आईं हैं। कुछ पहलू एक दूसरे से ग्रहण कर समृद्घ भी हुईं हैं। मसलन कहानी बिंब प्रतीक कविता से ग्रहण कर अधिक सघन और कविता कथात्मकता, द्वंद्व, नाटकीयता जैसे तत्व कहानी से ग्रहण कर अधिक पठनीय और रोचक। इन कविताओं की कहन में भी गज़ब की कथात्मकता या किस्सागोई का आलंबन कविता को अधिक पठनीय और ग्राहय बनाता है। सीटियां जैसी कितनी ही कविताएं उदाहरण..।
एक अच्छे कवि के पास स्मृति, यथार्थ और स्वप्न का भरपूर वैभव उसके कविता संसार को समृद्ध करता है। यह वैभव कुल राजीव पंत के यहां भरपूर है। स्मृति का गहरा साक्ष्य मसलन – तख्तियां, ब्लैक बोर्ड, कोट, पुराना शहर जैसी कविताएं। यथार्थ यानी आज के प्रश्नों और चिंताओं से सीधी मुठभेड़ करती कविताएं। मसलन– स्मार्ट जंगल, पहाड़ पर पहाड़ के लिए, ऑक्सीजन बार, पृथ्वी की पीठ पर, मछलियां आदि कविताएं जल, जंगल, ज़मीन यानी पारिस्थितिकी की वैश्विक चिंताओं को गहनता से उठाती हैं। रफ्फू कविता में पहाड़ को रफ्फू करने के लिए लाल पंखों वाली चिड़िया की सुई में धागा डालने की समझ का रूपक जनपक्षधर वैचारिकी की ताकत और उम्मीद को बखूबी इंगित करता है। सौदागर कविता बाज़ारवाद के ख़तरों को इंगित करती है।– वह आएगा/लिखेगा किताबों में/ अपना नाम/ और उनमें रखे फूल/ ले जाएगा।
एक और बड़ा गुण इन कविताओं का है गज़ब का पर्सनोफिकेशन या मानवीकरण। पेड़, पहाड़, धूप, बर्फ़ हवा, जंगल, जीव–जन्तु, नदियां, समूची पृथ्वी...सब खूब बोलते बतियाते हुए। एक भरा पूरा जीवंत संसार।
ये कविताएं चीज़ों और स्थितियों में मौजूद जीवंतता, जीवन तत्व की शिनाख्त करती हैं। जीवन तत्व को आरोपित नहीं करती। उसमें कवि सुलभ संवेदनशीलता चीज़ों में जीवन तत्व की तमाम संभावनाओं से संवाद करती है। मसलन ‘नदी के पत्थर‘। यहां कवि नदी से लाए गए पत्थर के भीतर पानी की बात करता है। यह असंभव दिखती हुई परिस्थितियों में भी संभावनाओं को देखने, यानी अप्रत्याशित आशा का प्रतीक है। आशा के प्रति ऐसी गहरी निष्ठा एक संवेदनशील कवि में ही हो सकती है। ये आशा वाद नहीं आशान्विति की कविता है। अर्जित करके भीतर स्थापित और फिर प्रकट होती आशा। यह सामान्य पत्थर नहीं है। नदी का पत्थर है। नदी के समीप्य और सानिध्य को आत्मसात किया हुआ पत्थर। नदी उसके भीतर समाई हुई है। अपने समूचे जल समेत..!
प्रेम का प्राचुर्य है यहां। लेकिन मांसल या दैहिक प्रेम नहीं। प्रेम का भीगा उदात्त रूप। मिसाल के तौर पर ‘भीगा छाता‘ ज़रूर पढ़ी जानी चाहिए। प्रेम का यह उदात्त भीगा रूप पानी शीर्षक कविताओं में भी व्यंजित हैं। मित कथन, बिंबात्मकता और भाषा का बरताव विशेष रूप से आकर्षित करता है। अग्रज कवि कुल राजीव पंत जी को उनके पहले कविता संग्रह की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। शानदार लोकार्पण कार्यक्रम के लिए कीकली ट्रस्ट को भी हार्दिक बधाई।
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