समीक्षा
खाली भरे हाथ। मूल लेखक : आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र I
अनुवाद राम
लाल वर्मा राही I
समीक्षक : रौशन जसवाल
--------------------------------------
खाली भरे
हाथ आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र की हिन्दी बोध कथाओं का पहाड़ी (क्योंथली) अनुवाद
है। अनुवाद रामलाल वर्मा राही ने किया है। आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र का साहित्य
जगत में महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर है। उनका साहित्य जगत में अविस्मरणीय योगदान रहा
है।
खाली मरे
हाथ साठ पृष्ठों की पुस्तक है जिसमें 76 बोध कथाएं संकलित की गई है। पुस्तक का
प्राकथन डॉ. प्रेमलाल गौतम जी ने लिखा है। पुस्तक शीर्षक 'खाली भरे हाथ को लेकर वे पाठको की जिज्ञासा को पूर्ण करते हुए संस्कृत का
श्लोक का उदाहरण देते है :-
नमन्ति
फलिनों वृक्षाः नमन्ति सज्जनाजनाः ।
शुष्कवृक्षाश्च
मुर्खाश्च न नमन्ति कदाचन ।।
अर्थात
ज्ञानवान व्यक्ति फलों से लदे झुके वृक्षों की भांति विनम्र और सहृदय होते है और
ज्ञानशून्य शुष्क नम्रता रहित खाली होते है।
जिऊवे री
गल में लेखक अपने पुस्तक खाली भरे हाथ। बोध कथायें। हृदय उद्गार व्यक्त करते हुए
इस अनुवाद की आवश्यकता पर पर लिखते है कि हिन्दी में इन बोध कथाओं को पढ़ने के बाद
उन्होंने महसूस किया कि इन्हें अपनी बोली में अनुदित करने से बच्चों को संदेश और
प्रेरणा मिलेगा। इसके माध्यम से वे अभिप्रेरित भी होंगे। जिऊवे री गल में सभी
सहयोगियों के प्रति कृतज्ञता भी व्यक्त करते है खाली मरे हाथ की में बोध कथाओं की
शुरुआत दुनिया री सैल बोध कथा से होती है जिसमें बचपन और जवानी का मार्मिक
वार्तालाप है। इस बोध कथा का मूल सन्देश है कि जीवन यात्रा में अनेक पड़ाव आते है।
रास्ते में आने वाली कठिनाईयों का सामना करते हुए समाज के प्रति ईमानदारी का भाव
रहना आवश्यक है।
रुकावट बोध
कथा भी जीवन यात्रा को सम्बोधित करती है । इस कथा में जीवन में करुणा, दया के एक दूसरे की मदद करने को विषय बना सारगर्भित सन्देश दिया गया कर।
इस विषय को ठींड और जवाणस बोधकथा में भी लिया गया जो वास्तव में प्रेरक और
प्रभावशाली है स्त्री पुरुषों जीवन सम्बंधों पर खाली भरे हाथ पुस्तक में जवाणसो री
तमन्ना, जवाणसा रा जीऊ, जवाणसा री
चुनरी, एस्स जमाने री प्रेमिका, जवाणसो
रा प्यार, बोध कथाएं है। ये बोध सम्बंधों में ईमानदारी समाज,
परिवार और प्रत्येक कार्य के प्रति स्नेह, आत्मीय
सम्बंधों और कार्यशील रहने का सन्देश देती है। माछो री माटी, माछो रा आपणा, माछो री कमजोरी, ठींडो री मजबूरी कुछ ऐसी बोध कथाएं है जो मनुष्य मात्र को कर्तव्य बोध का
अहसास के पात्र है। हमारे खान पान में मांसाहार और शाकाहार में से श्रेष्ठ आधार को
व्यक्त करती बोध कथाएं मांसाहारी रा कारण और 'शाखाहारी रा
जोर प्रेरक बोध बोधकथाए है तो आहार के चयन
उपयोगिता पर प्रकाश डालती है। पापी सरीर बोध कथा में दशहरा के माध्यम बुराई के
समूल नाश औ स्वस्थ जीवन यापन पर जोर दिया। गया है।
शर्मी रा
पर्दा बोध कथा में प्रातःकाल और रात के वार्तालाप के माध्यम से सुबह जल्दी जागने
के महत्त्व को दर्शाया गया जो वास्तव में तार्कित और युक्ति संगत है। कामणा बोधकथा
में भी दीपक के दूसरे को प्रकाश देने के माध्यम से जीवन में लोक कल्याण और जन सेवा
में लगाने का सन्देश दिया गया है।
शीर्षक
बोधकथा खाली भरे हाथ में छोटे बच्चे और उम्र दराज दादा का फल युक्त और फल रहित
वृक्षों के बारे जिज्ञासा पूर्ण वार्तालाप है। फलयुक्त वृक्ष सदा ही झुके रहते है
जबकि फल रहित वृक्ष तनकर कर सीधे खड़े होते है। वैसे ही विनम्र व्यक्ति फलयुक्त
वृक्षों की भांति होता है। इसी तरह काग सनैहा में बच्चा माँ से पूछता है कि कोऊआ
हर रोज सभी घरों में उड़ता हुआ कांव कांव क्यों करता रहता है। माँ बच्चे को कौए की
कांव कांव को आहार खान पान से जोड़ते हुए आहार चयन के महत्त्व के बारे में समझाती
है कि हमें क्या खाना चाहिए और क्या नहीं चाहिये। खाली भरे हाथ में आम्मा रा सनेहा
बोधकथा माँ की पूजनीयता के बारे में सन्देश देती है। माँ की महत्त्वपूर्णता ओर
उसके होने का अहसास जीवन में प्रसन्नताओं का संचार करता है। शिक्षा देने वाला
त्याग,
पढ़ा लिखा मूर्ख, सुअरों री आदत, बियूंत, नजरा री कमी, रोटी अरो
जुद्ध और कमजोरी ई मौत इस पुस्तक की प्रेरक और अभिप्रेरित करने वाले बोध कथाओं में
प्रमुख है। रोटी रो जुद्ध बोधकथा हर समय में प्रासंगिक और समसामयिक बोध
कथा है।
मींस (प्रतिस्पर्धा) बोध कथा में पतंगों के माध्यम से बेहद ही मार्मिक और सार्थक
सन्देश दिया है कि जीवन का मूल सन्देश एक दूसरे से ईर्षया करना नहीं अपितु सहयोग, समरसता और मदद करना है। खाली भरे हाथ में अनुदित सभी बोध कथाए जीवन दर्शन
का परिचायक है। पुस्तक की विशेषता है कि कठिन पहाड़ी शब्दों के पाद टिप्पणी में
अर्थ दिए गए है जो पाठकों को
कठिन पहाड़ी शब्दों को समझने में सहायता करते है।
पहाड़ी में अनुवाद बेहद कम हो रहा है लेकिन राम लाल वर्मा राही का ये प्रयास
श्लाघनीय है। पुस्तक पठनीय, संग्रहणीय तो है ही साथ ही
बच्चों के चरित्र निर्माण और दृष्टिकोण विकास में सहायक है।
पुस्तक की
महता देखखते ही हिमाचल के राज्यपाल महामहिम शिव प्रताप शुक्ल जी ने राजभवन में
विमोचन किया था। बेशक पुस्तक 60 पृष्ठों की छोटी आकार में है परन्तु सभी बोध कथाएं
अभिप्रेरित और जीवन को स्वच्छ उच्च मूल्य देने वाली बोध कथाएँ है। सबसे
महत्त्वपूर्ण बात कि आचार्य जगदीश चंद्र मित्र की हिन्दी बोध कथाओं को पहाड़ी
(क्योंथली) में अनुदित करने में राम लाल बर्मा राही ने ईमानदारी से मेहनत की है
जिसके लिए वे बधाई के पात्र है।
No comments:
Post a Comment