* पुस्तक समीक्षा देवता झूठ नहीं बोलता* लेखक-मनोज चौहान * समीक्षा * रौशन जसवाल *
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बात निकलेगी तो दूर तलक जाऐगी। अब शीर्षक ही लीक से हट कर हो तो चर्चा होना
स्वाभाविक है। शीर्षक है देवता झूठ नहीं बोलता, मनोज चौहान का लघुकथा संग्रह। देवता झूठ नहीं बोलता मनोज चौहान की दूसरी पुस्तक है जो अंतिका प्रकाशन गाजियाबाद से प्रकाशित हुई है। मनोज चौहान पहली पुस्तक काव्य संग्रह के रूप में 'पत्थर तोड़ती औरत' 2017 में अंतिका प्रकाशन के माध्यम से ही पाठकों तक पहुंची थी। इस काव्य संग्रह ने साहित्य जगत, खास कर युवा रचनाकारों के मध्य सार्थक अस्थिति दर्ज करवाई थी।
फिलहाल हम बात कर रहे है लघुकथा संग्रह 'देवता झूठ नहीं बोलता 'की। मित्रवत सम्बंधों के चलते मनोज चौहान ने ये लघुकथा संग्रह डाक द्वारा मुझ तक पहुंचाया। पुस्तक का शीर्षक, और गेटअप देख कर मैं पुस्तक के प्रति आकर्षित तो हुआ साथ ही जिज्ञासा भी उत्पन्न हुई। प्रारम्भ में कुछ लघुकथाओं पर नज़र डाली, अच्छी लगी तो सोचा कुछ चुनी हुई लघुकथाओं को अपने Youtube चैनल के लिए रिकार्ड कर पाठकों के लिए प्रस्तुत करूंगा। ज्यो ज्यो पुस्तक में आगे बढ़ता गया तो निर्णय में परिवर्तन हुआ और संग्रह की सभी लघुकथाओं को 40 ऐपिसोड में रिकार्ड कर लिया। सच मानिए लघुकथाओं को पढ़ते और रिकार्ड करते बेहद आनन्द आया।
देवता 'झूठ नहीं बोलता' की लघुकथाएं हमारी आस पास की घटनाओं का एक गंम्भीर दस्तावेज है । लघुकथाओं के पात्र और केन्द्रीय विषय लगता है जैसे वे हमारे बेहद समीप है और पात्र घटनाये जैसे हमारे सामने सजीव हो।
संग्रह से गुजरते हुए पाया कि लघुकथाएं सामाजिक असमानता, अंध विश्वास, जातिय वर्ग भेद, जीवन स्तर की असमानता, धार्मिक असमानता अवसरवादिता, राजनैतिक गतिरोध, ग्रामिण संकीर्णता जीवन परम्पराओं और संस्कृति को समेटे हुए है। देवता झूठ नहीं बोलता लघुकथा संग्रह में मुझे विविधता का आभास हुआ। कभी कभी कहीं कहीं केन्द्रीय विषय की पुनारावृति भी महसूस हुई।
इन्ही बिन्दुओं के आधार पर ही मैं संग्रह पर कुछ बोलने लिखने में सक्षम हो पाया।
देवता झूठ नहीं बोलता की अधिकतर लघुकथाएं प्रथम वर्ग यानी अँध विश्वास, जातिय भेदभाव, सामाजिक विभिन्न, असमानताओं पर आधारित है। व्यंग्य बाण, भीतर का डर, बहुत देर हो गई, वशीकरण, संकीर्ण सोच, आत्मबोध, लोकलाज और शीर्षक लघुकथा · देवता झूठ नहीं बोलता' इसी वर्ग में आती है शीर्षक लघुकथा 'देवता झूठ नहीं बोलता' हमारे ग्रामिण परिवेश की जातिय गूढ़ता का परिचय देती है। नाम के साथ सरनेम न होना ग्रामिण क्षेत्रों में बहुधा समस्या उत्पन्न कर देता है। शीर्षक लघुकथा में प्रयुक्त संवाद " म्हारा देवता नहीं मानता' ग्रामिण क्षेत्रों में धार्मिक और जातिय असमानता और भेदभाव को दर्शाता है। 'बकरा लघुकथा में लेखक मिस्त्री जमनू के माध्यम से इसी तरह के वर्गभेद का सुन्दरता और सरल शब्दों में उल्लेख करता है। दण्ड स्वरूप 'बकरा' देना ये प्रथा आज भी बहुधा देखने को मिल जाती है। मुझे लगता है सामाजिक संरचना की तरफ संकेत करती अन्य विभिन्न लघुकथाए पाठकों को मंथन के लिए प्रेरित करेंगी।
धार्मिक और जातिय भेदभाव, असमानता और सर्कार्ण सोच पर आधारित लघुकथाएं, वो तो पेट में है, मौका परस्त, संकीर्ण सोच, डाका, आत्म बोध, कुछ ऐसी रचनाएं है जो पाठकों को अवश्य उद्वेलित करेंगी।
द्वितीय श्रेणी में अवसरवादिता, राजनैतिक प्रभाव, और महत्वांकाक्षा जैसे विषयों को समेटे अनेक सारमार्गित और तार्किक तथा प्रभावशाली लघुकथाएं है। 'अपने लोग'
दोगलापन, सरकारी राशन, नवीनीकरण, संगत में रंगत, कीड़े मकोड़े, सहपाठी, और फोन कट गया, जुगाड, पर्दे, साँठ गाँठ, नकली, नोटबंदी, बीच का रास्ता, असली चेहरे कुछ ऐसी लघुकथाए हैं जो पाठकों को आत्ममंथन के लिए प्रेरित करेंगी, ऐसा मेरा मानना है। पर्दा लघुकथा का विषय इसी ताने बाने में बुना है। इस श्रेणी में मुझे पांच सौ का नोट, औचक निरीक्षण, संघर्ष की राह, सहपाठी लघुकथाए व्यक्तिरूप से प्रभावित करती है।
जीवन परम्पराओं जीवन संस्कृति और लिंग भेद जैसे विषयों पर आधारित लघुकथाओं में अहसास, मातृत्व, लिहाफ, गुड्डे को सॉरी बोलो, बदलाव, अपने हिस्से का संघर्ष, संवेदनशीलता, बायोडाटा, पापा आप कब आओगे, उधारी नहीं होगी, भोलापन आदि लघुकथाएं पाठकों को अवश्य ही प्रभावित करेगी और पाठकीय रुचि में वृद्धि करेगी ऐसी आशा है।
लघु कथा संग्रह देवता झूठ नहीं बोलता' से गुजरते हुए मुझे कुछ लघुकथाये मान की लड़ाई, कोर्ट केस का उल्लेख करती मिली । इस प्रकार की लघुकथाए मुझे सत्यता के बहुत आस पास लगी जो क्षेत्र विशेष की राजनैतिक घटनाओं, सामाजिक असमानता तथा पूर्वाग्रहों को दर्शाती है। लेकिन विषय की पुनरावृति मुझे बार बार अखरती रही। बदलाव शीर्षक से दो लघुकथाएं संग्रह में है। शीर्षक में समानता पाठकों में असमंजस की स्तिथि उत्पन्न करता है। संभवत लेखक का ध्यान इस और नहीं गया। संभवत इन्हे बदलाव एक और दो शीर्षक देते तो अच्छा रहता।
लघुकथाओं को पढ़ते हुए लगता है ज्यों अनेक घटनाक्रम हमारे बेहद समीप है जिन्हें हमने भोगा है या अपने आस पास घटते देखा है। लेखकों सम्पादकों पर आधारित लघुकथाएं बड़ा लेखक और नवीनीकरण भी स्वागत योग्य है अन्यथा इस तरह के विषयों पर कम ही लेखक लिख पाते हैं। लघुकथाओं के पात्र भी जिज्ञासा पैदा करते है। ग्रामिण परिवेश की लघुकथाओं में पात्र जमनू, रौलू, भागुमल, फुकरुदास, मकरुदास और रामदीन आदि है तो नगरीय परिवेश की लघुकथाओं में सतीश, विनय, निशांत, और शेखर जैसे आधुनिक नाम है जो लघुकथाओं के समय काल और परिवेश से न्याय करते दिखते है और लघुकथाओं के कलेवर को सुन्दरता भी प्रदान करते हैं। पात्रों में बसेडू और शिंगोटे मुझे सत्य पात्र लगते है जिनके माध्यम से लेखक सन्देश देने में सफल हो पाया है संग्रह की नऊआ और कऊआ तथा आत्म बोध लघुकथाएं प्रभावित हो करती है परन्तु ये लघुकथाएं मुझे बोध कथाओं की तरह लगती है। बदलाव लघुकथा आशावादी सन्देश देने वाली लघुकथा है जो उम्मीद जगाती है कि मार्ग से भटके युवाओं को सामूहिक प्रयासों से सही मार्ग पर लाया जा सकता है।
देवता झुठ नहीं बोलता की अधिकतर लघुकथाएं लेखक के अंतर्द्वंद्व और सामाजिक पूर्वाग्रहों को व्यक्त करती है। संग्रह में संकलित लघुकथाओं की भाषा सरल और साधारण है जिसे पाठक आसानी से आत्मसात करेगा। लघुकथाओ का केन्द्रीय विषयों का प्रायः मानव जीवन और समाज के नजदीक होना पाठकों को मंथन के लिए प्रेरित करता है। लघुकथाओं का विषय प्राय: हमारे आसपास का होना संग्रह की सार्थकता में वृद्धि करता है। लेखक किसी दूसरे ग्रह या समाज की बात नहीं करता वो अपने समाज अपने लोगों और अपने जीवन के घटनाक्रम को विषय बनाता है जो लेखक की सामाजिक जुड़ाव और ईमानदारी को दर्शाता है।
संग्रह की लघुकथाएं लम्बे समय तक याद की जाती रहेगी और मील का पत्थर साबित होगी तथा लघुकथा लेखन में स्थान बनाएगी, ऐसा मेरा विश्वास है।
'मेरी बात' में लेखक अपनी लघुकथा लेखन यात्रा के माध्यम से सहयात्रीयों, परिवारजनों और सम्पादकों को याद करते हुए कृतज्ञता व्यक्त करता है, जो संग्रह को सुन्दर और उपयोगी बनाता है। लेखक पाठकों से स्वस्थ और स्वच्छ आलोचना का भी स्वागत करता है जो लेखक की शालीनता और ईमानदारी को दर्शाती है। इसके लिए लेखक साधुवाद का पात्र है।
देवता झूठ नहीं बोलता के लेखक इन लघुकथाओं के माध्यम से संवेदना , व्यवस्था पर आक्रोश, समाज के प्रति उत्तरदायित्व, घटनाओं पर सामायिक नज़र, विषय पूरक समझदारी और ईमानदारी का परिचय भी देते हैं। जिससे लघुकथाएं सुन्दर और प्रभावशाली बन पड़ी है। सभी लघुकथाएँ पठनीय है कुरीतियों पर करारी चोट करती है। हो सकता है सामाजिक पूर्वाग्रहों के चलते कुछ पाठक इन लघुकथाओं पर विपरीत दृष्टि- कोण भी अपनाएं परन्तु देवता झूठ नहीं बोलता की लघुकथाएं चरित्र पतन सामाजिक मूल्यों, धार्मिक विश्वास, ग्रामिण और नगरीय जीवन और दायित्व बोध का प्रतिनिधित्व करती है।
Youtube के लिए 40 ऐपिसोड रिकार्ड करते हुए देवता झूठ नहीं बोलता की लघुकथाएं अनेक विचारणीय प्रश्न सामने लाती रही और अनेक जिज्ञासा पैदा करती रही है। यह प्रश्न और जिज्ञासाए तो ज्यों की त्यों बनी रहेगी। लेकिन यक्ष प्रश्न तो एक ही है जो जस का तस है, क्या 'देवता झूठ नहीं बोलता' ?
* रौशन जसवाल
20 अक्तूबर 2023
11:33 रात्रि
(पाठक देवता झूठ नहीं बोलता की लघुकथाओ को मेरे यूट्यूब चैनल @RoshanJaswalVikshipt और Manoj Chauhan जी के फेसबुक वॉल पर सुन सकते है। )
HIMPRASTH JANUARY 2024
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