* पुस्तक समीक्षा "सम्बित के पास जब मैं नहीं थी" (कहानी संग्रह) * पारमिता षडंगीं
* समीक्षा * प्रदीप बिहारी बेगूसराय (बिहार) *
संवेदना को छूती कहानियां
पारमिता षडंगीं की मातृभाषा ओड़िआ है। वह ओडिआ के अतिरिक्त हिंदी भी जानती हैं। हिंदी भी उतना ही जानती है, जितना ओड़िआ । मतलब, ओड़िआ और हिंदी पर समान अधिकार रखती हैं। दोनों भाषाओं के गद्य-पद्य में रचनाशील हैं। साथ ही, एक सजग अनुवादक भी हैं। उनकी तेरह मौलिक हिंदी कहानियों का यह संग्रह पाठकों के समक्ष आ रहा है, जो एक सुखद बात है। इस संग्रह में संग्रहित कहानियाँ पाठकों के ईर्द-गिर्द की कहानी लग सकती है और इसी कारण पाठकों की प्रिय कहानियाँ भी बन सकती हैं। इन कहानियों की प्रस्तुति में यह दम दिखता है।
कहानी में कथावस्तु की नवीनता और विश्वसनीयता के साथ-साथ कहानी कहने का ढंग भी महत्वपूर्ण होता है। कुछ बातें यथा, कहानी में वर्णित परिवेश, कहानी की भाषा, कथ्य के अनुसार परिवेश एवं कथा-पात्रों का चयन एवं प्रतिस्थापन आदि पर लेखक जितना अधिक काम करता है, कहानी उतनी विश्वसनीय बन पाती है। इस संग्रह की कहानियों से गुजरते हुए कहानियों की विश्वसनीयता पर आपको किसी प्रकार का शक नहीं होगा।
इस संग्रह की कहानियों में, जैसा मैंने ऊपर कहा है कि पाठकों के ईर्द-गिर्द की कथावस्तु को प्रस्तुत किया गया है। ये कहानियाँ जीवन के यथार्थ का बखान करती हैं, और इतनी सहजता से बखान करती हैं कि पाठकों के मन में अपनी जगह बना लेती हैं। पाठकों को लगता है कि ये उनकी ही कहानी है, मात्र उन्हीं की। जो कहानियाँ पाठकों के मन में यह बोध उत्पन्न कर देती हैं, सफल कहानियों की श्रेणी में होती हैं। यह बोध उत्पन्न करने में इस संग्रह की कहानियाँ भी सफल हुई हैं।
कहानियों में विभिन्न विमर्शों की बात का चलन भी पिछले कुछ दशकों से चर्चा में रहा है। इस दृष्टिकोण से अगर देखा जाय तो इस संग्रह में स्त्री और वृद्ध विमर्श की कहानियाँ आनुपातिक रूप में अधिक हैं। यह सत्य है कि आज के समाज में स्त्री और वृद्धों को अपेक्षित सम्मान नहीं मिल पा रहा है। ऐसी स्थिति में एक सजग लेखक का दायित्व बन जाता है कि उनके जीवन के राग-विराग को अपनी कहानियों का विषय बनाएं।
इस संग्रह की एक कहानी ‘नीड़’ की चर्चा करना चाहूंगा कि इस कहानी का पारायण करते हुए आप पाएंगे कि यह कहानी कई विमर्शों का संगम है। स्त्री और वृद्ध विमर्श के साथ-साथ यह कहानी पर्यावरण विमर्श के लिए भी आमंत्रित करती है। छल-कपट, धूर्तता और अर्थ के बल पर किए जा रहे अत्याचार को भी इस कहानी में दर्शाया गया है। इस कहानी की शिल्पगत खासियत यह है कि पूरी कहानी का सूत्रधार पेड़ पर रह रहे तोता-मैना को बनाया गया है। पक्षियों के माध्यम से आदमी की व्यथा-कथा और संवेदना को इस कहानी में उकेर कर पारमिता ने अभिनव कार्य किया है।
इसी तरह ‘निःसंगता के स्वर’ कहानी में भी एक सेना के अवकाशप्राप्त, पर विधुर अधिकारी की व्यथा कही गई है, जिसके बच्चे विदेश में रहते हैं और मूल घर को प्लेटफॉर्म की तरह समझना भी भूल गए हैं। उस अधिकारी के घर में चोर घुस गया है। दोनों में संवाद होता है। सिर्फ दो पात्रों की इस कहानी का ट्रीटमेंट पाठक को बखूबी बांधता है। यह कहानी तो पढ़ते ही बनती है।
इस संग्रह में एक कहानी मिलेगी –‘संबित मिश्र के पास जब मैं नहीं थी’। यह विशुद्ध प्रेमकथा है। क्लासरूम, हॉस्टल और कैरियर से गुजरते हुए यह कहानी पाठकों को शाश्वत प्रेम का दिग्दर्शन करा सकती है।
इस संग्रह में संग्रहित पारमिता जी की कहानियां ग्रामीण और नागर बोध की हैं। मेरी यह बात कहानियों को पढ़ने के बाद आपको थोड़ा अटपटा लग सकती है, कारण पूरे गांव की कहानी प्रायः आपको नहीं दिख सकती है। पर, पारमिता के लेखन का कौशल कह लें या परिपक्वता, नागर बोध की कहानियों में वह ग्रामीण परिवेश को कुशलता से समेट लेती है। और इस संग्रह की कुछ कहानियों में आप पारमिता षड़ंगी के इस कौशल को देख पाएंगे।
आज के विषम बुद्धि विरोधी माहौल में अगर किसी चीज का क्षरण हो रहा है, तो वह है- संवेदना। संवेदना का क्षरण ही मानवीय मूल्यबोध को हाशिए से भी हटाने पर तुला है। ऐसे समय में संवेदना और मानवता को बचाए रखने का संघर्ष एक सजग लेखक का दायित्व बन जाता है। उपरोक्त कहानियों के साथ पारमिता षडंगी ने अपनी अन्य कहानियाँ यथा- ‘शून्य ईलाका’, ‘मकड़ी का जाल’, ‘काल्पनिक’, ‘पत्थर में बदलनेवाली’, ‘वो, मैं और दो घंटो का आलाप’, ‘मां, बीनू और बिल्ली’, ‘हमसफर’,‘खजाना’, ‘अनदेखा घाव’ कहानियों के माध्यम से संवेदना और मानवता को बचाए रखने के संघर्ष में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज किया है। लगे हाथ यह भी बता दूं कि इन कहानियों के शिल्प भी आपको परम्परागत शिल्पों से अलग लगेगी ।
मैं पारमिता षड़ंगी का अभिनन्दन करता हूँ। साथ ही, शुभकामनाएँ भी देता हूँ। इन कहानियों को पढ़ने के बाद तय है कि पाठकों को उनके कथाकार से उम्मीदें बढ़ जाएंगी। पर, मैं आश्वस्त हूँ कि पारमिता पाठकों के उम्मीद पर खड़ी उतरेंगी।
शुभकामनाओं के साथ।
प्रदीप बिहारी
बेगूसराय (बिहार)
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