* पुस्तक समीक्षा काव्य संग्रह--चिराग * लेखक-शिव सन्याल * समीक्षा * गोपाल
शर्मा *
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एक इंजीनियर के मन
मस्तिष्क से जब कविता जन्म लेती है तो मानवता में प्रकाश फैलाने के लिए “चिराग”
स्वयमेव प्रजवलित हो जाते हैं। ऐसा ही कुछ शिव सन्याल जी ने किया
है। देवभूमि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला की ज्वाली तहसील के गांव मकड़ाहन के
सन्याल बंधु साहित्य के क्षेत्र में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। शिव सन्याल
कविसम्मेलनों की शान और जान हैं।शिव सन्याल जी की कविता जितनी सशक्त होती है उतनी
ही शानदार इनकी प्रस्तुति होती है।
प्रस्तुत काव्य संग्रह “चिराग”
शिव सन्याल जी की हिन्दी कविताओं का सुंदर गुलदस्ता है। गुरु वंदना
से शुरू हो कर कई प्रकार के भावों को अपने में समेटता हुआ, विविध
रसों का आस्वादन कराता हुआ संसार को एक मेला बता कर काव्य संग्रह की इतिश्री कर
देता है।गुरु वंदना में शब्दों से अधिक भावना का महत्व है।
गुरु सानिध्य
प्यार का, मिटे कष्ट
अपार।
गुरु आशीष जिसे मिले,मन का
मिटे विकार।
देवधरा हिमाचल का
गुणगान भी बहुत ही सुंदर शब्दों में किया गया है।
देवदार चील के
पेड़ हैं,
लम्बे ऊंचे सुंदर विशाल।
हरियाली से है हराभरा, हिमाचल
देवभूमि का भाल।
अपने प्यारे वतन
हिंदुस्तान की प्रशंसा में भी कवि ने खूबसूरत शब्दों का चयन कर के कविता की रचना
की है।जिसकी दो पंक्तियों को आपके साथ सांझा करने का मोह नहीं त्याग पा रहा हूँ।
मैं सत्य अहिंसा का
पुजारी,
धर्मों का मान सम्मान हूँ।
हिन्दू, मुस्लिम,
सिख, इसाई
का प्यारा हिंदुस्तान हूँ।
कविता के माध्यम से
स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई है। पिता के प्रति
कृतज्ञता भाव भी बहुत शानदार शब्दों में व्यक्त किया गया है। बेटियों पर लिखी
कविता के माध्यम से भ्रूणहत्या का विचार रखने वाले लोगों को फटकार लगाकर कवि ने
कवि धर्म का निर्वाह किया है।
हो विपदा के घने अंधेरे, बेटी मुस्कान से
मोहती है।
जिस घर में बेटी नहीं
होती, ममता घुट घुट के रोती है।
शिव सन्याल जी की
कविताओं में कहीं राजनीति के गिरते स्तर पर चोट है, कहीं कर्म की महत्ता
का गुणगान है तो कहीं समाज के गिरते नैतिक स्तर पर सशक्त प्रहार है।
दुनिया साथी लाभ की, जब
तक धन है पास।
चिपके रहते
जोंक से, बन
के रिश्ते खास।
अधुनिकता के नाम पर
हो रहे नैतिक पतन का चित्रण कवि ने बड़ी सफलता से किया है।
बिक गई है आज मर्यादा, बेशर्मी
के बाजार में।
अधुनिकता अब छा गई है, हर
नर और नार में।
खेलने खाने और पढ़ने
की उम्र में बच्चे को जब मजबूरी में मजदूरी करनी पड़ती है तो उसकी मन स्थिति को कवि
ने खूबसूरत पंक्तियों में पिरोकर समाज के मुंह पर तमाचा मारने जैसा कार्य किया है।
बढ़ते उछल कूद मस्ती
में, मारें मस्ती में किलकार।
मेरा मन भीतर
है रोता,
जाऊं प ढ़ने मैं इसबार।
अंतिम कविता में कवि
ने इस संसार को मिथ्या तथा क्षणभंगुर बता कर मानव को मोह माया से बच कर स्वयं को
सदकर्मों में लगाने की प्रेरणा दी है।
मोह माया के पंछी, कितना
यहां ठिकाना है।
छोड़ बंधन यह सारे, चले
इक दिन जाना है।
अपने परिवेश में
व्याप्त घटनाओं,
स्थितियों, परिस्थितियों का अवलोकन ही शिव
सन्याल जी की कविताओं का कथ्य है।इन कविताओं के माध्यम से कवि ने अपने दृष्टिकोण
को पाठकों के सम्मुख रखा है। समाज में व्याप्त कुरीतियों पर चोट है।स्वतंत्रता
सैनानियों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की है, तथा युवाओं
में देशप्रेम की भावना जागृत करने का उद्योग किया है। काव्य में भाषा से अधिक
भावों का महत्व होता है। अतः” चिराग” काव्य
संग्रह के लिए शिव सन्याल जी को हार्दिक बधाई। मां सरस्वती का आशीर्वाद सदैव आप पर
बना रहे।
गोपाल शर्मा, 21,जय मार्कीट कांगड़ा, हि.प्र.।
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